भोजपुर मंदिर ,मध्यप्रदेश भोपाल
भोजेश्वर मंदिर, जिसे भोजपुर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, मध्य प्रदेश के भोपाल के पास स्थित है। यह मंदिर भारतीय वास्तुकला और धार्मिक इतिहास का एक अनमोल नगीना है। इसे भगवान शिव को समर्पित किया गया है और इसका निर्माण 11वीं सदी में परमार वंश के राजा भोज द्वारा कराया गया था।
इतिहास और निर्माण
भोजपुर का नाम राजा भोज से लिया गया है, जो परम्परा वंश के सबसे प्रसिद्ध शासक थे। ग्यारहवीं शताब्दी से पहले भोजपुर से कोई पुरातात्विक साक्ष्य नहीं मिला है, एक तथ्य जो स्थानीय किंवदंतियों द्वारा पुष्टि की गई है, जो बताता है कि कैसे भोज ने “नौ नदियों और निन्यानवे शिवसूत्रों की धाराओं को गिरफ्तार करने के लिए” बांधों की एक श्रृंखला बनाने का संकल्प लिया था। राज्य में एक स्थान पाया गया जिसने राजा को इस व्रत को पूरा करने की अनुमति दी और बांधों को विधिवत भोजपुर में बनाया गया।
भोजेश्वर मंदिर का निर्माण कार्य 1010 ईस्वी में शुरू हुआ था। राजा भोज ने इसे एक भव्य और विशाल शिवलिंग के साथ बनवाया था, जो आज भी मंदिर का प्रमुख आकर्षण है। हालांकि, मंदिर का निर्माण अधूरा रह गया था। इसके बावजूद, मंदिर की भव्यता और वास्तुकला आज भी आगंतुकों को मंत्रमुग्ध कर देती है।
भोजपुर शिव को समर्पित अपूर्ण भोजेश्वर मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। यह स्थल राष्ट्रीय महत्व के स्मारक के रूप में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के संरक्षण में है। मंदिर में भारत के सबसे बड़े पिंड में से एक 5.5 मीटर (18 फीट) लंबा और 2.3 मीटर (7.5 फीट) परिधि में है। इसे एक ही चट्टान से बाहर निकाला गया है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा मंदिर की मरम्मत की गई थी, जिसने मौसम की क्षति को रोकने के लिए ऊपर से एक छत भी जोड़ा गया.
माना जाता है कि राजा भोज ने इस मंदिर को अपने राज्य की समृद्धि और शक्ति का प्रतीक बनाने के लिए निर्माण कराया था। भोजेश्वर मंदिर की संरचना और डिज़ाइन में अद्वितीयता और सजीवता का अद्भुत संगम है। इसके अलावा, मंदिर के आस-पास के क्षेत्र में भी कई पुरातात्विक और ऐतिहासिक स्थलों के अवशेष पाए गए हैं, जो इसके ऐतिहासिक महत्व को और बढ़ाते हैं।
हिन्दू भवन के दरवाजों में सबसे बड़ा है। मन्दिर के निकट ही इस मन्दिर को समर्पित एक पुरातत्त्व संग्रहालय भी बना है। शिवरात्रि के अवसर पर राज्य सरकार द्वारा यहां प्रतिवर्ष भोजपुर उत्सव का आयोजन किया जाता है।
भगवान शिव की आराधना करने के लिए पांडवों ने एक रात में इस मंदिर का निर्माण पूरा करने की प्रतिज्ञा ली थी, जो पूरी नहीं हो सकी। इस प्रकार यह मंदिर आज तक अधूरा है
वास्तुकला
भोजेश्वर मंदिर की वास्तुकला अद्वितीय है। यह मंदिर उत्तर भारतीय नगरा शैली में बनाया गया है। इसकी ऊँचाई लगभग 106 फीट है और इसका शिवलिंग लगभग 18 फीट ऊँचा और 7.5 फीट व्यास का है, जो इसे दुनिया के सबसे बड़े शिवलिंगों में से एक बनाता है।
मंदिर का गर्भगृह विशाल और खुले स्थान में है, जिसमें शिवलिंग स्थापित है। गर्भगृह के चारों ओर चार स्तम्भ हैं, जो मंदिर की छत को सहारा देते हैं। मंदिर का प्रवेश द्वार भव्य और अलंकृत है, जिसमें देवी-देवताओं की मूर्तियों और पौराणिक कथाओं की झलक मिलती है।
मंदिर का अधूरापन भी इसकी विशेषता है। गर्भगृह और शिवलिंग के अलावा, मंदिर के शेष हिस्से का निर्माण अधूरा रह गया था। इसके बावजूद, मंदिर की भव्यता और वास्तुकला के तत्व आज भी आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। यह मंदिर मूलतः18.5 मील लम्बी और7.5 मील चौड़ी झील के किनारे बना है । इस झील के निर्माण की योजना में राजा भोज ने पत्थर और रेत के तीन बांध बनवाए थे । इनमें से पहला बांध बेतवा नदी पर बना था जो पानी को रोक लेता था और बाकी तीन तरफ घाटी में पहाड़ियाँ थीं । दूसरा बांध वर्तमान मेंडुआ गाँव के पास दो पहाड़ियों के बीच की जगह को जोड़कर पानी के निकास को रोक देता था और तीसरा बांध आज के भोपाल शहर के स्थान पर बनाया गया था जो एक छोटी मौसमी नदी कलियासोत के पानी को मोड़कर इस बेतवा झील में देता था । ये कृत्रिम जलाशय 15वीं शताब्दी तक बने रहे ।
एक गोंड किवदंती के अनुसार मालवा के राजा होशंग शाह ने अपनी सेना से इस बांध को तुड़वा दिया था जिसमें उन्हें तीन महीने लगे थे । यह भी कहा जाता है कि होशंग शाह का बेटा यहाँ बाँध की झील में डूब गया था और बहुत खोजबीन के बाद भी उसका शव नहीं मिला था । क्रोधित होकर उसने तोप से बाँध को उड़ा दिया और तोप से मंदिर को भी गिराने की कोशिश की । इससे मंदिर का ऊपरी और पार्श्व भाग गिर गया । इस बांध के टूटने से सारा पानी बह गया और फिर इस अपार जलराशि के अचानक समाप्त हो जाने से मालवा क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन आ गया ।
इस प्रसिद्ध स्थान पर मकर संक्रांति और महाशिवरात्रि के दौरान दो वार्षिक मेले भी आयोजित किए जाते हैं । इस समय दूर- दूर से लोग इस धार्मिक आयोजन में भाग लेने के लिए यहां पहुंचते हैं । यहां की झील वर्तमान भोपाल तक फैली हुई है । मंदिर के निर्माण में प्रयुक्त पत्थर भोजपुर के चट्टानी क्षेत्रों से ही प्राप्त किया गया था । मंदिर के पास से लेकर दूर- दूर तक पत्थरों और चट्टानों को काटने के अवशेष दिखाई देते हैं । भोजपुर के शिव मंदिर और भुवनेश्वर के लिंगराज मंदिर तथा कुछ अन्य मंदिरों के निर्माण में समानता दिखाई देती . है ।
धार्मिक महत्व
भोजेश्वर मंदिर धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। भगवान शिव के इस मंदिर में भक्त दूर-दूर से दर्शन के लिए आते हैं। यह मंदिर महाशिवरात्रि और श्रावण मास में विशेष रूप से अधिक भीड़भाड़ वाला रहता है, जब भक्त बड़ी संख्या में भगवान शिव की पूजा-अर्चना के लिए यहाँ एकत्र होते हैं।
मंदिर का शिवलिंग अपने आप में एक अद्भुत चमत्कार है। इसकी विशालता और भव्यता को देखते हुए, यह कहा जा सकता है कि इसे बनाने के लिए असाधारण शिल्पकला और समर्पण की आवश्यकता थी।
पुरातात्विक महत्व
भोजेश्वर मंदिर केवल धार्मिक स्थल ही नहीं, बल्कि एक महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल भी है। भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण (ASI) ने इस मंदिर को संरक्षित स्मारक घोषित किया है। मंदिर के आसपास कई पुरातात्विक खुदाईयों में विभिन्न वस्तुएं और शिलालेख पाए गए हैं, जो उस समय की संस्कृति और जीवनशैली का प्रतिबिंब प्रस्तुत करते हैं।
मंदिर के निर्माण से संबंधित कई अधूरे हिस्से भी मिले हैं, जो यह दर्शाते हैं कि निर्माण कार्य कैसे किया गया था और क्यों अधूरा रह गया। इन अवशेषों के माध्यम से इतिहासकार और पुरातत्वविद् उस समय की निर्माण तकनीकों और वास्तुकला के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
पर्यटकों के लिए आकर्षण
भोजेश्वर मंदिर न केवल धार्मिक और पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि पर्यटकों के लिए भी एक प्रमुख आकर्षण है। मंदिर की भव्यता, विशाल शिवलिंग, और सुंदर प्राकृतिक परिवेश इसे एक आदर्श पर्यटन स्थल बनाते हैं। यहाँ आने वाले पर्यटक मंदिर की अद्वितीय वास्तुकला, इतिहास और धार्मिक महत्व का आनंद ले सकते हैं।
भोपाल से लगभग 28 किलोमीटर दूर स्थित, यह मंदिर एक दिन की यात्रा के लिए आदर्श है। इसके अलावा, मंदिर के आस-पास कई अन्य दर्शनीय स्थल भी हैं, जो पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं। इनमें भूतल और प्राचीन अवशेष, पिकनिक स्थल और प्राकृतिक सौंदर्य शामिल हैं।
सांस्कृतिक कार्यक्रम और आयोजन
भोजेश्वर मंदिर में समय-समय पर विभिन्न सांस्कृतिक और धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन होता रहता है। महाशिवरात्रि के दौरान यहाँ विशेष पूजा और मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें बड़ी संख्या में भक्त और पर्यटक हिस्सा लेते हैं।
इसके अलावा, मंदिर परिसर में विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम, संगीत समारोह और नृत्य प्रस्तुतियाँ भी आयोजित की जाती हैं, जो स्थानीय संस्कृति और कला का अद्भुत प्रदर्शन करती हैं। ये आयोजन न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होते हैं, बल्कि पर्यटकों के लिए भी एक विशेष अनुभव प्रदान करते हैं।
निष्कर्ष
भोजेश्वर मंदिर भारतीय इतिहास, संस्कृति और धर्म का एक अनमोल रत्न है। इसकी अद्वितीय वास्तुकला, धार्मिक महत्व और पुरातात्विक धरोहर इसे एक विशेष स्थान बनाते हैं। यह मंदिर न केवल धार्मिक श्रद्धालुओं के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि इतिहासकारों, पुरातत्वविदों और पर्यटकों के लिए भी एक आकर्षण का केंद्र है।
भोजेश्वर मंदिर के दर्शन और इसके इतिहास से जुड़ी कहानियाँ हमें भारतीय संस्कृति और इतिहास की गहराईयों में ले जाती हैं। यह मंदिर हमें यह सिखाता है कि किस प्रकार एक शासक अपने राज्य की समृद्धि और शक्ति को दर्शाने के लिए एक भव्य स्मारक का निर्माण करा सकता है। इसके साथ ही, यह मंदिर हमें उस समय की अद्वितीय शिल्पकला और वास्तुकला का एक अद्भुत उदाहरण भी प्रस्तुत करता है।
भोजेश्वर मंदिर की यात्रा न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करती है, बल्कि हमें भारतीय इतिहास और संस्कृति की समृद्ध धरोहर से भी परिचित कराती है। यह मंदिर वास्तव में भारतीय धरोहर का एक अनमोल गहना है, जिसे देखने और समझने के लिए हर व्यक्ति को यहाँ जरूर आना चाहिए।
WRITTEN BY:-
Rahul
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